व्यवसाय की स्थापना
(Establishment of Business)
प्रारम्भिक- प्राचिन काल में व्यवसाय का क्षेत्र अत्यन्त सीमित व संकुचित था। उत्पादन छोटे पैमाने पर किया जाता था। व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए न तो किसी विशेष समस्या का सामना करना पड़ता था और न ही इसके लिए किसी विशेष प्रकार की शिक्षा-दिक्षा या अनुभव की ही आवश्यकता होती थी। किनूतु आज प्रिस्थितियां बदल गई हैं। व्यापार का आकार तथा व्यवसायिक जटिलताओं में वृध्दि हो गई है। आधुनिक, विशिष्टीकरण एंव 'गलाकाट प्रतिस्पर्धा' के युग में किसी नवीन व्यवसाय अथवा उद्योग को स्थापित करना उतना ही कठिन है जितना एक नए शिशु को जन्म देना। जिस प्रकार नए शिशु को जन्म देने में अनेक नयी-नयी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उसी प्रकार एक नए व्यवसाय या उद्योग की स्थापना करते समय अनेक नई-नई कठिनाइयां व्यवसायी के समक्ष आती हैं। अतः आज के युग में किसी नए व्यवसाय की स्थापना से पुर्व सम्भावित समस्याओं पर गम्भिरतापूर्वक विचार कर लेना अत्यन्त आवश्यक हो गया है।
व्यवसाय की स्थापना से पूर्व ध्यान देने योग्य बातें
(Things to Keep in Mind Before Setting Up a Business)
Question- व्यवसाय की स्थापना से पहले किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
What things to keep in mind before setting up/establishment of a new Business?
Answer- किसी नए व्यवसाय की स्थापना करने से पहले निमन बातों पर विचार करना आवश्यक होगा:
(1) व्यवसाय का चयन- व्यवसाय की स्थापना करने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम निर्णय करना चाहिए कि वह कैसा व्यवसाय प्रारम्भ करें? इसके लिए वह अपने परिवार-जनों, मित्रों एंव सम्बन्धियों से सलाह ले सकता है, किन्तु उसे व्यवसाय का चयन करने में (i) अपनी व्यक्तिगत रुचि, (ii) व्यक्तिगत योग्यता,
(iii) उपलब्ध क्षेत्र, (iv) पूंजी की मात्रा, (v) जोखिम की मात्रा, पर ध्यान देना होगा तथा उसी के अनुसार अपनी सामर्थ्य तथा योग्यता के अनुरूप ही व्यक्ति को व्यवसाय का चयन करना चाहिए। व्यापार के अनेक स्वरूप हो सकते हैं, जैसे- स्थानिय, राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्टीय, थोक व्यापार, फुटकर व्यापार, किसी वस्तु का निर्माण करना, अथवा निर्मित वस्तु का क्रय-विक्रय करना, किसी विशिष्ट सेवा को प्रदान करना, आदि। व्यवसाय का चयन करने में निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए :
(अ) व्यक्तिगत रूचि- इच्छुक व्यक्ति को उसी व्यवसाय का चयन करना चेहिए जिसमें रुचि हो, क्योंकि अरुचिपुर्ण कार्य से न तो सुख व शान्ति मिलती है और न ही सफलता।
(ब) योग्यता व दक्षता- व्यक्तिगत रुचि के साथ-साथ व्यवसायी में काम करने की योग्यता व दक्षता भी होनी चाहिए। अतः उसे अपनी योग्यता व दक्षता की सीमाओं के अन्दर ही कार्य करना चाहिए तथा शिक्षा तथा अनुभव का भी ध्यान रखना चाहिए।
(स) प्रवर्तन का क्षेत्र- व्यवसायिक सुअवसरों की खोज करना और खोज के पश्चात् उन अवसरों से लाभ कमाने के उद्देश्य से किसी व्यवसायिक या औद्योगिक इकाई की स्थापना एंव संगठन करना ही 'प्रवर्तन' कहलाता है। अतः व्यवसाय में प्रवेश के इच्छुक व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि जिस व्यवसाय की वह स्थापना करना चाहता है उसमें उसकी सफलता का क्या क्षेत्र है। उसे ऐसे व्यवसेय का चयन करना चाहिए जिसमें प्रतिस्पर्धा न्यूनतम हो तथा मांग की पूर्ति पूर्ण न हुई हो अथवा जहां मांग तीव्रता से बढ़ रही हो। जैसे आने वाले समय में 'कूरियर सेवा' का उज्जवल भविष्य है, क्योंकि आगे आने वाले समय में व्यवसाय ई-कामर्स के माध्यम से होगा।
(द) पूंजी की उपलब्धता- व्यवसाय को प्रारम्भ करने के पूर्व व्यवसायी को उसके संचालन के लिए आवश्यक पूंजी का पहले से ही अनुमान लगा लेना चाहिए। पूंजी की आवश्यकता तीन कार्यों के लिए होती है- (i) स्थायी सम्पत्तियां; जैसे- भूमि, भवन, मशीन व फर्नीचर, आदि क्रय करने के लिए, (ii) चालू सम्पत्तियां, जैसे- कच्चा माल, ईंधन, आदि के क्रय करने के लिए, (iii) कार्यशील पूंजी- विभिन्न दैनिक कार्यों को चलाने के लिए, आदि।
(य) लाभ या जोखिम की मात्रा- व्यवसाय से प्राप्त होने वाले लाभ का भी अनुमान लगा लेना चाहिए और जिस व्यवसाय में लाभ की लेशमात्र भी सम्भावना न हो, उसको नहीं करना चाहिए। दूसरे , लाभ के साथ जोखिम की मात्रा का भी अनुमान लगाना आवश्यक है। जोखिमपूर्ण व्यवसाय में तभी प्रवेश करना चाहिए जब लाभ की सम्भावना निश्चित हो।
(2) व्यपारिक संगठन का स्वरूप- एक नये व्यवसाय की स्थापना के पूर्व यह निश्चित करना भी आवश्यक है कि व्यवसाय के संगठन का स्वरूप क्या हो। व्यवसायिक संस्थाएं मुख्यतः चार प्रकार की हो सकती हैं, जैसे :
(अ) एकाकी व्यापार
(ब) साझेदारी का व्यवसाय
(स) संयुक्त पूंजी वाली कम्पनी
(द) सहकारिता
(3) वस्तु तथा बाजार विश्लेषण- व्यवसायी जिस वस्तु का उत्पादन करना चाहता है, उसे उस वस्तु के सम्बन्ध में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। इसे ही 'वस्तु विश्लेषण' कहा जाता है। 'बाजार-विश्लेषण' का आशय बाजार में प्रस्तावित वस्तु की मांग, उपभोक्ताओं की रुचि, वस्तु की नई डिजायनों, किस्मों एंव उपयोगों तथा नए बाजारों की खोज से है। अतः बाजार विश्लेषण किया जाना भी नितान्त आवश्यक है।
(4) व्यवसाय के स्थान का चयन- व्यवसाय स्थल का चयन करते समय व्यवसायी को सबसे प्रदेश का, फिर उस प्रदेश में क्षेत्र विशेष का , तत्पश्चात उस क्षेत्र विशेष में स्थल विशेष का चयन करना चाहिए। सस्ते ईंधन व शक्ति की उपलब्धता, बैंक व साख सुविधाएं, यातायात व संदेशवाहन की सुविधाएं; स्थानिय कर व नियम, सरकेरी नीति, आदि महत्वपूर्ण घटकों को ध्यान में रछने चाहिए।
(5) व्यवसायिक इकाई का आकार- व्यवसायिक इकाई का आकार इस प्रकार का होना चाहिए कि व्यवसायी को न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि व्यवसायिक इकाई व संयन्त्र का अनुकूलतम आकार हो। अनुकूलतम आकार का निर्धारण करते समय तकनीकी तत्व, वित्तीय तत्व, प्रबन्धकिय तत्व, विपणीय तत्वों तथा जोखिम के तत्वों को ध्यान में रखना चाहिए।
(6) संयन्त्र का फैलाव- संयन्त्र के फैलाव का आशय कारखाने के भवन में यन्त्रों, मशीनों और औजारों का स्थान नियत करने और अन्य षाज-सज्जा, वस्तु, गैस, पानी, आदि के लिए समौचित व्यवस्था करने के कार्य से है।
(7) मानव, माल व मशीन की उपलब्धता- मानव, माल व मशीन तीन 'म' आधुनिक व्यवसाय की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं। व्यवसायी को व्यवसाय की स्थापना के पूर्व ही कुशल, परिश्रमी व ईमानदार श्रमिकों, अच्छे व सस्ते कच्चे माल एंव उन्नत व अधिक कार्यक्षम मशीनों की व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
(8) भवन संरचना- इस बात पर भली प्रकार विचार कर लेनी चाहिए कि एक-मंजिली इमारत लाभदायक रहेगी या बहुमंजिली, प्रत्येक मंजिल में क्या साज-सामान होना चाहिए, उन्हें किस ओर खुला रखा जाय और कार्य पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा, कृत्रिम प्रकाश की क्या व्यवस्था होगी, इत्यादि।
(9) लाइसेन्स प्राप्त करना- औद्योगिक (विकास एंव नियमन) अधिनियम, 1951 के अन्तर्गत वर्णित परावधानों के अनुसार केन्द्रीय सरकार की अनुमति के बिनान तो कोई बड़ा उपक्रम स्थापित किया जा सकता है, न किसी नयी वस्तु का उत्पादन किया जा सकता है, न किसी विद्यमान औद्योगिक इकाई का विस्तार किया जा सकता है और न किसी औद्योगिक उपक्रम के स्थान में परिवर्तन किया जा सकता है। सरकार को उद्योगों के लाइसेंस देने या दिये हुए लाइसेन्स रद्द करने का अधिकार है। सामान्यतः निम्न उद्योगों के लिए ही लाइसेन्स लेना अनिवार्य है : (i) शराब बनाना, (ii) तम्बाकू के सिगार एंव सिगरेट बनाना, (iii) इलेक्ट्रानिक, एयरोस्पेस तथा रक्षा उपकरण, (iv) डिटोनेटिंग फ्यूज, सेफ्टी फ्यूज, गन पाउडर, नाइट्रोसेल्यूलोज, (v) खतरनाक रसायन।
(10) सरकार की अर्थ-वाणिज्यिक नीति- व्यापार को आरम्भ करने से पूर्व ही प्रवेशकर्ता को चाहिए कि सरकार की व्यापार तथा अर्थ-नीतियों व नियमों, आदि का पूरा-पूरा अध्ययन कर लें ताकि बीच में रूकावट न पड़े।
(11) कार्यालय का संगठन
(12) कर्मचारियों का चयन
(13) उत्पादन; क्रय एंव विक्रय नीति
(14) संगठनात्मक कलेवर की रचना
(15) कुशल प्रबन्ध व्यवस्था
निष्कर्ष- व्यवसाय की स्थापना के लिए उपर्युक्त सभी तत्वों पर ध्यान देना नितान्त आवश्यक है, तभी व्यवसायी सफलता पाने की आशा कर सकता है। यदि बिना सोचे विचारे व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया गया है तो उसमें सफलता प्राप्त करना नितान्त असम्भव है।
(2) व्यपारिक संगठन का स्वरूप- एक नये व्यवसाय की स्थापना के पूर्व यह निश्चित करना भी आवश्यक है कि व्यवसाय के संगठन का स्वरूप क्या हो। व्यवसायिक संस्थाएं मुख्यतः चार प्रकार की हो सकती हैं, जैसे :
(अ) एकाकी व्यापार
(ब) साझेदारी का व्यवसाय
(स) संयुक्त पूंजी वाली कम्पनी
(द) सहकारिता
(3) वस्तु तथा बाजार विश्लेषण- व्यवसायी जिस वस्तु का उत्पादन करना चाहता है, उसे उस वस्तु के सम्बन्ध में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। इसे ही 'वस्तु विश्लेषण' कहा जाता है। 'बाजार-विश्लेषण' का आशय बाजार में प्रस्तावित वस्तु की मांग, उपभोक्ताओं की रुचि, वस्तु की नई डिजायनों, किस्मों एंव उपयोगों तथा नए बाजारों की खोज से है। अतः बाजार विश्लेषण किया जाना भी नितान्त आवश्यक है।
(4) व्यवसाय के स्थान का चयन- व्यवसाय स्थल का चयन करते समय व्यवसायी को सबसे प्रदेश का, फिर उस प्रदेश में क्षेत्र विशेष का , तत्पश्चात उस क्षेत्र विशेष में स्थल विशेष का चयन करना चाहिए। सस्ते ईंधन व शक्ति की उपलब्धता, बैंक व साख सुविधाएं, यातायात व संदेशवाहन की सुविधाएं; स्थानिय कर व नियम, सरकेरी नीति, आदि महत्वपूर्ण घटकों को ध्यान में रछने चाहिए।
(5) व्यवसायिक इकाई का आकार- व्यवसायिक इकाई का आकार इस प्रकार का होना चाहिए कि व्यवसायी को न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि व्यवसायिक इकाई व संयन्त्र का अनुकूलतम आकार हो। अनुकूलतम आकार का निर्धारण करते समय तकनीकी तत्व, वित्तीय तत्व, प्रबन्धकिय तत्व, विपणीय तत्वों तथा जोखिम के तत्वों को ध्यान में रखना चाहिए।
(6) संयन्त्र का फैलाव- संयन्त्र के फैलाव का आशय कारखाने के भवन में यन्त्रों, मशीनों और औजारों का स्थान नियत करने और अन्य षाज-सज्जा, वस्तु, गैस, पानी, आदि के लिए समौचित व्यवस्था करने के कार्य से है।
(7) मानव, माल व मशीन की उपलब्धता- मानव, माल व मशीन तीन 'म' आधुनिक व्यवसाय की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं। व्यवसायी को व्यवसाय की स्थापना के पूर्व ही कुशल, परिश्रमी व ईमानदार श्रमिकों, अच्छे व सस्ते कच्चे माल एंव उन्नत व अधिक कार्यक्षम मशीनों की व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
(8) भवन संरचना- इस बात पर भली प्रकार विचार कर लेनी चाहिए कि एक-मंजिली इमारत लाभदायक रहेगी या बहुमंजिली, प्रत्येक मंजिल में क्या साज-सामान होना चाहिए, उन्हें किस ओर खुला रखा जाय और कार्य पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा, कृत्रिम प्रकाश की क्या व्यवस्था होगी, इत्यादि।
(9) लाइसेन्स प्राप्त करना- औद्योगिक (विकास एंव नियमन) अधिनियम, 1951 के अन्तर्गत वर्णित परावधानों के अनुसार केन्द्रीय सरकार की अनुमति के बिनान तो कोई बड़ा उपक्रम स्थापित किया जा सकता है, न किसी नयी वस्तु का उत्पादन किया जा सकता है, न किसी विद्यमान औद्योगिक इकाई का विस्तार किया जा सकता है और न किसी औद्योगिक उपक्रम के स्थान में परिवर्तन किया जा सकता है। सरकार को उद्योगों के लाइसेंस देने या दिये हुए लाइसेन्स रद्द करने का अधिकार है। सामान्यतः निम्न उद्योगों के लिए ही लाइसेन्स लेना अनिवार्य है : (i) शराब बनाना, (ii) तम्बाकू के सिगार एंव सिगरेट बनाना, (iii) इलेक्ट्रानिक, एयरोस्पेस तथा रक्षा उपकरण, (iv) डिटोनेटिंग फ्यूज, सेफ्टी फ्यूज, गन पाउडर, नाइट्रोसेल्यूलोज, (v) खतरनाक रसायन।
(10) सरकार की अर्थ-वाणिज्यिक नीति- व्यापार को आरम्भ करने से पूर्व ही प्रवेशकर्ता को चाहिए कि सरकार की व्यापार तथा अर्थ-नीतियों व नियमों, आदि का पूरा-पूरा अध्ययन कर लें ताकि बीच में रूकावट न पड़े।
(11) कार्यालय का संगठन
(12) कर्मचारियों का चयन
(13) उत्पादन; क्रय एंव विक्रय नीति
(14) संगठनात्मक कलेवर की रचना
(15) कुशल प्रबन्ध व्यवस्था
निष्कर्ष- व्यवसाय की स्थापना के लिए उपर्युक्त सभी तत्वों पर ध्यान देना नितान्त आवश्यक है, तभी व्यवसायी सफलता पाने की आशा कर सकता है। यदि बिना सोचे विचारे व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया गया है तो उसमें सफलता प्राप्त करना नितान्त असम्भव है।
Awesome Knowledge
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