PARTNERSHIP I
April 22, 2020
LIMITED PARTNERSHIP | WHAT IS LIMITED PARTNERSHIP?
LIMITED PARTNERSHIP | WHAT IS LIMITED PARTNERSHIP?
सीमित साझेदारी (LIMITED PARTNERSHIP)
परिभाषा- इसे 'THE LIMITED LIABILITY PARTNERSHIP ACT, 2008' के नाम से जानते हैं। यह 1 अप्रैल , 2009 को लागू हुआ। यह अधिनियम पुरे भारत में लागू होता है। जिस साझेदारी में कुछ सदस्यों का दायित्व सीमित होता है , उसे 'सीमित साझेदार' कहते हैं। कॉमन लॉ (Common Law) के अनुसार, साझेदारी के समस्त सदस्यों का दायित्य्व असीमित होता है किन्तु सिविल लॉ (Civil Law) के अनुसार साझेदारी के कुछ सदस्यों का दायित्व सीमित हो सकता है। साझेदारी के इस स्वरूप का उदय उन लोगों के लाभार्थ हुआ है जो किसी फर्म में साझेदार तो बनना चाहते हैं परन्तु अपना दायित्व सीमित रखना चाहते हैं। वे संस्था की ओर से न तो कोई काम कर सकते हैं और न किसी कार्य में हस्तछेप ही कर सकते हैं।
विशेषताएं- सीमित साझेदार के प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं :
(1) दो प्रकार के सदस्य- इनमें दो तरह के सदस्य होते हैं- (अ) साधारण अथवा क्रियाशील साझेदार, जिनका दायित्व असीमित होता है और जो व्यवसाय ससंचालन में भाग लेने का पूर्ण अधिकार रखते हैं. तथा
(ब) विशेष या सीमित साझेदार जिनका दायित्व सीमित होता है और जो व्यवसाय-संचालन में भाग नहीं ले सकते।
(2) कम-से-कम एक साधारण साझरदार होना- इनमें से से कम-से-कम एक साधारण साझेदार और कम-से-कम एक सीमित साझेदार होता हैं।
(3) अनिवार्य पंजीयन- इनकी पंजीयन कराना अनिवार्य है और रजिस्ट्री के लिए प्रार्थना-पत्र देते समय उसमे यह भरना पड़ता है कि किन साझेदारों का दायित्व सीमित है और किनका असीमित।
(4) पूँजी पूर्णतः दत्त होना- इसकी पूँजी नकद रोकड़ में एवं पूर्णतः दत्त होनी चाहिए।
(5) संस्था को बाध्य करना- एक सीमित साझेदार अपने कार्यों से संस्था को बाध्य नहीं कर सकता क्योंकि संस्था के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने का उसे अधिकार नहीं होता।
(6) समाप्ति नहीं- सीमित साझेदार की मृत्यु, दिवालिया या पागल होने से फर्म समाप्त नहीं होता।
(7) सीमित साझेदार संस्था में निष्क्रिय साझेदार के रूप में कार्य करता है, क्रियाशील साझेदार के रूप में नहीं।
(8) संस्था की दृष्ट्रि से अन्तर न होना- संस्था की दृष्टि से सामान्य तथा सीमित साझेदार में कोई अन्तर नहीं होता है।
(9) हित हस्तान्तरण- अन्य साझेदारों की सहमति से सीमित साझेदार अपना हित दूसरों को हस्तान्तरित कर सकता है।
(10) अधिक पूँजी लगाया जाना- सामान्यतः सीमित साझेदार को साधारण साझेदार की अपेक्षा अधिक लगानी पड़ती है।